ख़याल यूही बुनता चला जाता मैं,
ये होता तो क्या होता, वो होता तो क्या होता…
कुछ सपने अधूरे, कुछ दिल में दबी बातें अधूरी,
मन ही मन पूरी करता चला जाता मैं।
सोच विचारों में खुद ही से लड़ता चला जाता मैं,
इस कीमती पल को खोते चला जाता मैं।
यही पल में है तक़दीर हमारी,
खवाइशें मन ही में पूरी करने में खो दु,
या जो है अभी, उसी में मगन होते चला जाऊँ ?
बस यही है अभी,
जो है सब सही है अभी !